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हम भारत की संताने हैं, भारत सबकी माता है ।

इसका मान बढ़ाने हेतु, जीना-मरना आता है ॥ध्र.॥


सीमाओं के प्रहरी बनकर, हम अरि-दल से भीड़ जाएँ ।

सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, "बरखा" सभी कुछ सह जाएँ ।

बंशी तज कर युद्ध-भुमि में, शस्त्र उठाना आता है ॥

इसका मान बढ़ाने हेतु, जीना-मरना आता हैं ॥१॥


पंच-तत्व के इस तन को प्रभु, जीवन-मूल्यों से भरना ॥

मन-बुद्धि और प्राण-आत्मा, निर्मल इनको प्रभु करना ।

सेवा और समर्पण द्वारा, हर मन हरना आता हैं ॥

इसका मान बढ़ाने हेतु, जीना-मरना आता हैं ॥२॥


समरसता का भाव जगा निज, सबको एक बनायेंगे ।

जाति, पंथ अरु वर्ग, प्रांत का, जड़ से भेद मिटायेंगे ॥

अवरोधों में अंगद जैसा, पैर जमाना आता है ॥

इसका मान बढ़ाने हेतु, जीना-मरना आता हैं ॥३॥

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¤ राग-भैरवी ¤

आरोहावरोह - सा रे ग म ध नि सां । सां नि ध प म ग रे सा

पकड़ - म ग सा रे सा ध नि सा रे सा
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सूरज बदले चन्दा बदले, बदल जाए ध्रुवतारा ।

पर भारत की आन न बदले, यह संकल्प हमारा ॥

उन्नत शीश हिमालय जिसका, वह झुकना क्या जाने ।

जो शकारि-रिपु दमन विजेता, वह डरना क्या जाने ।

अब संभले वह शत्रु नराधम, जिसने है ललकारा ॥१॥
पर भारत की आन न बदले, यह संकल्प हमारा ॥

देवासुर संग्राम जयी हो, महाबली जग माता ॥

रावण कंस असुर संहारक, सत्य धर्म निर्माता ।

इस स्वदेश के हम सपूत हैं, साक्षी है जग सारा ॥२॥

पर भारत की आन न बदले, यह संकल्प हमारा ॥


मिली चुनौती जब भी हमकों, उसे सदा स्वीकार किया ।

शीश चढ़ाकर मातृभुमि का, नित्य नया श्रृंगार किया ॥

वही शक्ति अब भी अक्षय है, बदलेंगे युग-धारा ॥३॥

पर भारत की आन न बदलें, यह संकल्प हमारा ॥

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